Ramayana - Hidden message for life (रामायण - जीवन के लिए छिपा संदेश )


नमस्कार, जय श्री राम।


रामायण एक ऐसा ग्रंथ जो भारत के हर सनातनी के घर में मिल जाएगा। मैं तो इसे ग्रंथ ना कहके इसे सनातन का इतिहास कहूँगा, रामायण को आप जैसे पढ़ेंगे वैसा ही अर्थ निकालेंगे। हमारे हर ग्रंथों में कुछ ना कुछ गूढ़ रहस्य, कुछ संकेत, शिक्षाएँ लिखी हुई है अब ये आप में निर्भर करता है कि आप उसे कैसे पढ़ते और समझते है।

किसी भी ग्रंथ को पढ़ते समय मेरी कोशिश रहती है कि उसमें छिपे हुए संदेशों और रहस्यों को समझूँ । रामायण पढ़ते समय जब मैंने उसने छिपे हुए गूढ़ संदेशों को समझने की कोशिश की तो एक अलग ही तरह की अनुभूति हुई, एक तरह का अनोखा ज्ञान मिला। ये ग्रंथ एक धार्मिक ग्रंथ ही नाही जीवन जीने का एक फ्रेमवर्क है अब ये आप पे निर्भर है कि आप इसे किस तरह से पढ़ते और समझते हैं।

आगे आने वाले लेखों में मैं कोशिश करूँगा उस गूढ़ रहस्यों को समझने और आप सबके साथ साझा करने की। आप सबकी प्रतिक्रिया इसे और भी गहन अध्ययन और समझने में सहयोग करेगा। आप सबकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

तो चलिए शुरू करते है रामायण के प्रथम चरित्र महाराज दशरथ के साथ।

महाराज दशरथ के बारें में कुछ भी कहना और लिखना सूर्य को दिया दिखाने के बराबर होगा, फिर भी एक तुच्छ प्रयास करूँगा समझने की। कोशिश करूँगा उनके चरित्र में छुपे हुए संदेशों को समझने की।

शुरू करते है दशरथ नाम के मतलब से। दशरथ का शाब्दिक अर्थ होता है जो दशों दिशाओं में रथ चला सके, मतलब हर दिशा में अपने मन रूपी रथ पे नियंत्रणरख सके।

महाराज दशरथ अपने मन रूपी रथ को किसी भी दिशा में भटकने नहीं देते थे उनका दशों इन्द्रियों पे पर पूर्ण नियंत्रण था इसीलिए वो दशरथ कहलाये।

अगर आपको अपने घर राम चाहिए तो आपको दशरथ बनना पड़ेगा तभी आपके घर जगत के पालन हार श्री विष्णु राम के रूप में आपके घर आएँगे।

महाराज दशरथ के जीवन के बारे में आप सबको मालूम है इसलिए मैं जीवन चरित्र दुबारा लिख के, उनके चरित्र के एक अलग ही पहलूँ को समझने की कोशिश करेंगे।

आइये अब कुछ ऐसा भी समझने की कोशिश करते है जो शायद हम सबने सोचा भी ना हों, हो सकता है कि ये लेख पढ़ने के बाद आप में से कुछ लोगों को थोड़ा बुरा भी लगे, इसके लिए मैं आप सबसे पहले ही छमा प्रार्थी हूँ ये मेरे अपने विचार है । किसकी भावनाओं को आहत करना मेरा उद्देश्य नहीं है।

महाराज दशरथ को अपने जीवन में काफ़ी कष्ट भी भोगने पड़े और वो कष्ट उनके स्वयं की कमियों की वजह से ही सहने पड़े हम उनमे से कुछ को यहाँ समझते है।

पहली तो उनकी आखेट यानी की शिकार करने का, मात्र अपने शौक़ के लिए किसी बेज़ुबान जानवर की हत्या किसी भी प्रकार से उचित नहीं। क्या होता यदि राजाधिराज महाराज को ये शौक़ नहीं होता।

यदि ये शौक़ नहीं होता तो गलती से जानवर समझ के तीर ना छोड़ते और वो ब्राह्मण पुत्र श्रवण को ना लगता ना ही महाराज को श्राप मिलता।

अगली कमजोरी ( अगर शब्द ग़लत हो तो छमा प्रार्थी हूँ)
बिना भविष्य के सोचे , समझे शून्य में कोई वचन दे देना, ये बिलकुल वैसे ही है जैसे की बिना कोई रक़म भरे चेक पे हस्ताक्षर कर देना, बिना सोचे समझे किसी भी सादे पेपर पे हस्ताक्षर कर देना।

यदि ये नहीं किये होते और महारानी को बिना सोचे समझे वचन ना दिये होते ना ही उन्हें पुत्र वियोग सहना पड़ता।

अगला ये था की उनका प्रेम सबके प्रति कभी बराबर नहीं रहा , चाहे तीनों महारानियों के लिए हो या चारों पुत्रों के लिए।

यदि उनका प्रेम तीनों महारानियों में बराबर का होता तो वो महारानी कैकेयी को सबसे अधिक ना प्यार देते ना उनकी हर बात को मानते, शम्भवतः प्रभु राम को वनवास ना भोगना पड़ता। परंतु महाराज का प्रेम उनके एक पुत्र प्रभु श्री राम में अधिक था, माना कि महाराज को पता था कि ये मात्र उनके पुत्र नहीं बल्कि जगत के पालन हार भगवान विष्णु है और ये महाराज का भक्ति पूर्ण समर्पण था, फिर भी उस समय प्रभु उनके पुत्र थे और श्री राम के साथ साथ उनके तीन और पुत्र थे । एक पिता के लिए सभी पुत्र या पुत्रियाँ बराबर के प्रेम या मोह के अधिकारी है इसमें कोई भेद भाव नहीं।

महाराज का प्रेम यदि सभी चारों पुत्रों में बराबर का होता तो शायद प्रभु श्री राम के वन गमन के बाद महाराज की पीड़ा थोड़ी कम होती और पुत्र वियोग में महाराज के प्राण ना जाते।

लेख थोड़ा लंबा हो गया क्या करे ये ग्रंथ है ही इतना प्यारा और महान, की शब्दों में इसे बाधना संभव नहीं

आप सबकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।

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